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अगर कोई व्यक्ति बार बार अपमान करता हैं तो क्या करें हिंदी ज्ञान krishna gyan


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 अपमान!  कोई व्यक्ति किसी दूसरे का अपमान क्यों करता है ? क्या आपने कभी विचार किया है ? वैसे तो हम भी बिना कारण बहुतो  का अपमान करते हैं हमारा अपना अपमान भी बहुत बार होता है


 संसार का सारा व्यवहार एक दूसरे का अपमान करने पर टिका है जैसे पति अपनी पत्नी का अपमान करता है पिता अपनी संतानों का अपमान करता है नौकरी देने वाला अपने नौकर का अपमान करता है अर्थात जो भी बलवान हैं वो निर्बल का अपमान करता है  


यदि हम शक्तिमान है तो अपमान के बदले में लड़ाई करते हैं और यदि लड़ने की शक्ति नहीं होती तो हम अपमान को सह लेते हैं स्वयं को निर्बल और असहाय मान लेते हैं हमें छोटे होने का एहसास होता है ऐसा प्रतीत होता है जैसे हमारी आत्मा कुचली गई हो किंतु कोई किसी का अपमान क्यों करता है ?

 हम विचार कर रहे थे की जब  अपमान होता है तो मनुष्य को अपनी निर्बलता का एहसास होता है और निर्बलता का बोध मनुष्य को कुचल देता है वह अधिक से अधिक निर्बल बन जाता है अत्याचार सहने की आदत सी पड़ जाती आत्मविश्वास का नाश हो जाता है और जब  आत्मविश्वास नहीं होता तो मनुष्य शराब और जुए जैसे व्यसनो में सुख ढूंढता है मन से रोगी बन जाता है |

आप  इस संसार में ऐसे अनेक लोगों को जानते होंगे जिन्हें आप  मतलबी कहते, जो आवश्यकता पड़ने पर  ही आपको याद करते हैं

आखिर किसी भी मनुष्य की ऐसी दुर्गति कोई क्यों करता हैं ?


जो व्यक्ति  अपमान करता  हैं    वास्तव में सिद्ध , क्या   करना चाहता है ?


 कभी गहराई से विचार किया है वास्तव में हम किसी का अपमान करते हैं उसकी निर्बलता सिद्ध करने के लिए यह बताने के लिए कि हम अधिक शक्तिमान हैं अर्थात वास्तव में अपमान करने वाला स्वयं अपने आपको शक्तिमान या बलवान सिद्ध करने का प्रयास कर रहा है अपमान करने वाला हकीकत में अपनी शक्ति से आश्वस्त नहीं हैं |

उसे अपनी शक्ति पर भरोसा नहीं है दूसरों को चुनौती देकर  अपनी शक्ति पर विश्वास प्राप्त करने की कोशिश करता है क्या यह सच नहीं ? ज्ञान से समझते हैं ( gyan se samajhate hein )

  जब हम किसी का अपमान करते हैं तो वास्तव में इतना ही प्रकट करते हैं कि हमें अपने बल पर भरोसा नहीं हैं  हमें संसार यह अभिरद संघर्ष प्रतीत  होता है कभी न रुकने वाली एक जंग सी दिखाई देती है |

हम अपने निकट आने वाले सभी को प्रतिद्वंदी मानते हैं फिर वह पति या पत्नी ही क्यों ना हो हमें निरंतर  लगता है कि हमें अपनी शक्ति सिद्ध  करनी होगी , अन्यथा हमारा शोषण होगा हमें किसी का  गुलाम बनना  पड़ेगा |

 किंतु क्या हमने कभी विचार किया हैं  ?

कि दूसरों को प्रतिद्वंदी अर्थात दुश्मन मानने के बदले  मित्र  मान ले हमारी सहयता करने वाले सहयोगी मान ले अर्थात   दूसरे व्यक्ति को प्रेम करे तो उसका अपमान करना आवश्यक ही नहीं होगा लेकिन  प्रेम करने के लिए आत्मविश्वास होना  आवश्यक है |

जिसे अपनी शक्ति पर विश्वास नहीं वह प्रेम कर ही नहीं सकता अर्थात जिसका हृदय आत्मविश्वास से भरा होता है ना वह अपमान करता है ना अपमान को स्वीकार करता है क्या यह सत्य नहीं  इस तथ्य पर विचार अवश्य कीजिएगा |

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